Niti Nirdeshak Tatva | नीति निर्देशक तत्व

भारतीय संविधान के भाग-4 में, अनुच्छेद, 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक नीति निर्देशक तत्वों (Niti Nirdeshak Tatva) का प्रावधान किया गया है। जिसे भारत मे आयरलैण्ड से ग्रहण किया है। इनका मुख्य उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना एवं सामाजिक तथा आर्थिक प्रजातंत्र को लागू करना है।

 

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Rajya Ke Niti Nirdeshak Tatva)

नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है। नीति निर्देशक तत्वों को भारत तथा आयरलैण्ड को छोड़कर विश्व के किसी भी देश के संविधान में शामिल नहीं किया गया है। भारत के संविधान में नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख भाग- 4, अनुच्छेद 36 से 51 तक किया गया है। जो आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित है। संविधान सभा में संविधानिक सलाहकार B॰N॰ रॉव के द्वारा इसकी सिफारिस की गई थी तथा तेज बहादुर सप्रू के द्वारा इसके प्रारूप का निर्माण किया गया। नीति-निर्देशक तत्वों में प्रस्तावना में निहित सामाजिक तथा आर्थिक न्याय की अभिव्यक्ति होती है एवं इसके अन्तर्गत गांधीवादी सिद्धातों को स्थान प्रदान किया गया है। गांधीवादी सिद्धान्त पर आधारित अनुच्छेद 40, 43, 46, 47, 48 ।

नीति निर्देशत तत्वों का स्वरूप या प्रकृति

ये न्यान्यालय में प्रवर्तनीय नहीं है। परंतु ये शासन के मूलभूत सिद्धान्त तथा राज्य का यह दायित्व है कि वह विधि निर्माण में निर्देशक तत्वों को लागू करने का प्रयत्न करें। अर्थात ये राज्य के लिए केवल सलाहकारी है। राज्य इन्हे लागू करने के लिए बाध्य नही है।


  • डॉ० भीमराव अम्बेडकर में नीति निर्देशक तत्वों को भारतीय संविधान की अनोखी विशेषता माना है।
  • ठाकुर दास भार्गव ने नीति-निर्देशक तत्वों को संविधान का प्राण माना है।

नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण

  • गांधीवादी सिद्धान्त
  • समाजवादी सिद्धान्त
  • बौद्धिक सिद्धान्त

नीति निर्देशक तत्वों से संबंधित अनुच्छेद (36 से 51)

अनुच्छेद -36  इसके अन्तर्गत राज्य को परिभाषित किया गया है तथा राज्य का वही अर्थ है जो कि मूल अधिकारी के सम्बन्ध में अनु॰ 12 में है।

अनुच्छेद -37  इस भाग में दिए गए उपबन्धो को न्यायालय के माध्यम से प्रवर्तनीय नही बनाया जा सकेगा परन्तु ये शासन के मूलभूत है एवं राज्य का यह दायित्व है कि वह विधि निर्माण में इन्हें लागू करें।

अनुच्छेद -38  उसके अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था करे जिससे समाजिक, आर्थिक, तथा राजनीतिक न्याय को सुनिश्चित किया जा सके, कि स्थापना कर लोक कल्याण की सिध्दि का प्रयत्न करेगा।

अनुच्छेद-39  इसके अन्तर्गत राज्य को कुछ नीतियों का पालन करने का दिशा निर्देश जारी किया गया है –

  1. राज्य प्रत्येक स्त्री व पुरुष को समान रूप से जीविका के साधन उपलब्ध करने का प्रयास करेगा।
  2. राज्य देश के भौतिक साधनों के स्वामित्व तथा नियंत्रण की ऐसी व्यवस्था करेगा कि अधिक से अधिक सार्वजनिक हित की प्राप्ति हो सके।
  3. राज्य इस बात का ध्यान रखेगा कि धन तथा उत्पादन के साधनों का केंदीकरण न हो सके। जिससे कि सार्वजनिक हितों के हानि को रोका जा सके।
  4. राज्य स्त्रीयों तथा पुरुषों हेतु समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान करेगा।
  5. राज्य श्रमिक पुरुशों व स्त्रीयों के स्वास्थ्य तथा शक्ति एवं बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग नहीं होने देगा।

अनुच्छेद-40 ग्राम पंचायतों का गठन

इसके अन्तर्गत राज्य को ग्राम पंचायतों का गठन कर उन्हें अधिक से अधिक शक्तियां तथा संसाधन प्रदय करने का दिशा-निर्देश जारी किया गया है। अर्थात पंचायती राज की प्रारम्भिक अभिव्यक्ति इसी अनुच्छेद में होती है।

अनुच्छेद-41 कुछ दशाओं में काम पाने , शिक्षा पाने तथा राज्य से लोक सहायता का अधिकार है।

अनुच्छेद-42 काम की न्यायसंगत तथा मानवोचित दशाएं एवं स्त्रियों को प्रसूति सहायता का उपबन्ध है।

अनुच्छेद-43 कामगारों के लिए निर्वहन मजदूरी।

इसके अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि मजदूर लोगों के कार्य के घन्टे निश्चित किए जाए। उनके रहने की दशाए उत्तम हो, वे अवकास के समय का सदउपयोग कर सके तथा कुटीर उद्योग धन्धो को प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।

अनुच्छेद-44 समान नागरिक संहिता का निर्माण।

इसका अभिप्राय है कि नागरिक मामलों जैसे-विवाह, तलाक उत्तराधिकार, गोद लेना आदि में सभी धर्मो के लिए समान नियमों को लागू करना ।


  • भारत में गोवा को छोड़कर समान नागरिक संहिता को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है।

अनुच्छेद-45 निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।

86 वें संशोधन अधिनियम 2002 के माध्यम से इसकी प्रकृति में परिवर्तन किया गया तथा 0 से लेकर 06 वर्ष तक के बालकों की देखभाल एवं नि: शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध किया गया।

अनुच्छेद-46 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं समाज के दुर्बल वर्गों की शैक्षणिक एवं आर्थिक उन्नति के प्रयत्न किया जाएगा।

अनुच्छेद-47 लोक स्वास्थ्य का संरक्षण तथा मद्य निषेध का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद-48 कृषि और पशुपालन और गौ-वध का निषेध।

अनुच्छेद-49 राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों तथा कलात्मक वातुओं का संरक्षण ।

अनुच्छेद-50 कार्यपालिका तथा न्यायपालिका का पृथक्करण।

अनुच्छेद-51 अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की अभिवृद्धि के प्रयास।

अनु॰51 में भारतीय विदेश नीति की प्रारम्भिक अभिव्यक्ति होती है क्योंकि भारतीय विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की प्राप्ति करना है।

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संशोधनों के माध्यम से जोड़े गए निर्देशक तत्व 

42वें संशोधन 1976 के माध्यम से जोड़े गए निर्देशक तत्व :

अनुच्छेद 39[क] समान न्याय तथा निःशुल्क कानूनी सहायता का उपबव्ध।

अनुच्छेद 39 [च] बालकों की शोषण से सुरक्षा तथा उनके स्वास्थ्य का संरक्षण।

अनुच्छेद 43 [क] कामगारों को उद्योगो के प्रबन्ध में भागीदारी।

अनुच्छेद 48 [क] पर्यावरण का संरक्षण तथा वन्य जीवों की सुरक्षा।

44वें संशोधन 1978 से जोड़ा गया निर्देशक तत्व :

अनु. 38 [2] – राज्य को आय- प्रतिष्ठा तथा अवसर में समानता उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाने चाहिए।

86वें संशोधन 2002 से जोड़ा गया निर्देशक तत्व :

अनु.45 इसके अन्तर्गत यह उपबंध किया गया कि राज्य प्रारंभिक शैशवास्था से लेकर 06 वर्ष तक के बालकों की देखभाल एवं निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करेगा।

97वें संशोधन 2011 से जोड़ा गया निर्देशक तत्व :

अनु. 43[ख] सहकारी समीतियों का निर्माण तथा प्रोत्साहन करना।

मूल अधिकार तथा नीति निर्देशक तत्व से अंतर

मूल अधिकार

नीति निर्देशक तत्व

1.  ये न्यायालय में वादयोग्य  हैं अर्थात इन्हें   न्यायालयों   के माध्यम से लागू कराया जा   सकता है।  ये न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं अर्थात उन्हें   न्याय के माध्यम से लागू नहीं कराया जा सकता है।
2.  ये व्यक्ति के लिए है।  ये राज्य के लिए हैं।
3.  इनके पास वैधानिक शक्ति विद्यमान है।  इनके पास नैतिक तथा राजनीतिक शक्ति   विद्यमान है।
4.  ये नकारात्मक हैं तथा राज्य को कुछ कार्य करने   से रोकते हैंतथा राज्य के वीरुध हैं।   इनकी प्रकृति सकारात्मक है। ये राज्य को कुछ   कार्य करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हैं।

 

मूल अधिकार तथा नीति-निदेशक तत्व एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। 1980 के मिनर्वा मिल्मवाद में उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह निर्धारित किया गया कि दोनों में कोई विरोधा नहीं है एवं दोनों एक दूसरे के पूरक है।

न्यायालय के अनुसार नीति-निदेशक तत्व वे लक्ष्य है जिन्हे हमें प्राप्त करना है तथा मूल अधिकार वे साधन है जिनके माध्यम से इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है।


FAQs

Ques -नीति निर्देशक तत्व क्या है (niti nirdeshak tatva kya hai)

नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है। नीति निर्देशक तत्वों को भारत तथा आयरलैण्ड को छोड़कर विश्व के किसी भी देश के संविधान में शामिल नहीं किया गया है। भारत के संविधान में नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख भाग- 4, अनुच्छेद 36 से 51 तक किया गया है। जो आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित है। संविधान सभा में संविधानिक सलाहकार B॰N॰ रॉव के द्वारा इसकी सिफारिस की गई थी तथा तेज बहादुर सप्रू के द्वारा इसके प्रारूप का निर्माण किया गया। नीति-निर्देशक तत्वों में प्रस्तावना में निहित सामाजिक तथा आर्थिक न्याय की अभिव्यक्ति होती है एवं इसके अन्तर्गत गांधीवादी सिद्धातों को स्थान प्रदान किया गया है।

Ques – नीति निर्देशक तत्व कहाँ से लिया गया है। (niti nirdeshak tatva kahan se liye gaye)

भारतीय संविधान के भाग-4 में, अनुच्छेद, 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक नीति निर्देशक तत्वों (Niti Nirdeshak Tatva) का प्रावधान किया गया है। जिसे भारत मे आयरलैण्ड से ग्रहण किया है।

Ques – नीति निर्देशक तत्व के उद्देश्य की व्याख्या कीजिए। (niti nirdeshak tatva ke uddeshya ki vyakhya kijiye)

नीति निर्देशक तत्व का मुख्य उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना एवं सामाजिक तथा आर्थिक प्रजातंत्र को लागू करना है।

Ques – राज्य के नीति निर्देशक तत्व के स्वरूप। (rajya ke niti nirdeshak tatva ke swaroop)

राज्य के नीति निर्देशक तत्व के स्वरूप –

  • गांधीवादी सिद्धान्त
  • समाजवादी सिद्धान्त
  • बौद्धिक सिद्धान्त

Ques – नीति निर्देशक तत्व कितने हैं।  (niti nirdeshak tatva kitne hai)।

36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक नीति निर्देशक तत्वों (Niti Nirdeshak Tatva) का प्रावधान किया गया है।

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