संविधान संशोधन | Samvidhan Sanshodhan
भारतीय संविधान लचीला तथा कठोर का अनोखा मिश्रण है। जिसका तात्पर्य है कि संविधान में संशोधन की प्रक्रिया न तो बहुत अधिक कठिन है न तो बहुत अधिक सरल है। संविधान संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण की गई है। संविधान के भाग-20 में अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत संविधान संशोधन (samvidhan sanshodhan) प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। भारत में संविधान संशोधन की शक्ति संसद के पास है। राज्य के विधान मंडलों को संविधान संशोधन की शक्ति नहीं प्राप्त है। संसद को प्रस्तावना, मूल अधिकार सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है । किन्तु संविधान के आधार भूत ढांचे में संशोधन नहीं कर सकती।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान संशोधन की शक्ति संसद में निहित है।
- संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है।
- संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों (लोक सभा तथा राज्य सभा) में गतिरोध की स्थिति में समाप्त हो जाता है।
- संविधान संशोधन विधेयक पर मतभेद की स्थिति में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं किया गया है।
- संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति की अनुमति के साथ ही अधिनियम का रूप ग्रहण कर लेता है।
Note :- 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971 के माध्यम से राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमति प्रदान करने के लिए बाध्य कर दिया गया है। अर्थात संविधान संशोधन विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता है।
संविधान संशोधन के प्रकार
- साधारण बहुमत के माध्यम से।
- विशेष बहुमत के माध्यम से।
- विशेष बहुमत तथा आधे राज्यों के विधान मंडलों के समर्थन के माध्यम से।
1. साधारण बहुमत के माध्यम से –
भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों में साधारण बहुमत के माध्यम से अर्थात् उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले आधे से अधिक सदस्यों के द्वारा संशोधन किया जा सकता है। जैसे- नये राज्यों का गठन, नाम तथा सीमाओं में परिवर्तन विधानपरिषद का निर्माण तथा समाप्ति । परंतु साधारण बहुमत के माध्यम से किए गए संशोधनों को संविधय संशोधन की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
2. विशेष बहुमत के माध्यम से-
भारतीय संविधान में सर्वाधिक परिवर्तन विशेष बहुमत के माध्यम से अर्थात सदन का बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से दिया जाता है। जैसे – मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्व।
3. विशेष बहुमत एवं आहो राज्यों के विधान अकलों का समर्थन-
भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों में परिवर्तन के लिए संसद के विशेष बहुमत तथा आधे राज्यों के विधान मंडलों के अनुमर्थन की आवश्यकता होती है। जैसे- राष्ट्रपति के निर्वाचन में परिवर्तन, संविधान संशोधन की प्रक्रिया में परिवर्तन।
प्रमुख संशोधन की सूची –
अब तक कुल 106 संविधान संशोधन हुए हैं। किन्तु हम यहां प्रमुख संशोधन का उल्लेख करेगें।
प्रथम संविधान संशोधन (1951) –
देश का प्रथम संविधान संशोधन 1951 में हुआ। इस संशोधन के अन्तर्गत 9वीं अनुसूची (भूमि सुधार) जोड़ी गई।
42वां संशोधन अधिनियम 1976-
इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर यह संशोधन पारित किया गया तथा इसके (42 वें संशोधन ) माध्यम से भारतीय संविधान में सर्वाधिक परिवर्तन किए गए। इसी लिए इस संशोधन को “लघु संविधान” की संज्ञा दी जाती है।
42वें संशोधन की विशेषताएं-
- प्रस्तावना में संशोधन किया गया तथा उसमें समाजवाद, पंथ निरपेक्षता तथा अखण्डता को जोड़ा गया।
- संविधान के भाग- 4 (क) में तथा अनुच्छेद 51 (क) में 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए।
- राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को मानने के लिए बाध्य किया गया।
- समस्त नीति-निर्देशक तत्वों को मूल अधिकारों पर वरीयता प्रदान की गई।
- न्यायपालिका की शक्तियों में कटौती की गई तथा संसद की सर्वोच्चता को स्थापित किया गया।
- राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा सम्पूर्ण देश अथवा उसके किसी भी भाग में की जा सकता है।
44वां संविधान संशोधन (1978)-
- सम्पत्ति के अधिकार तथा सम्पत्ति के स्वतंत्रता की समाप्ति कर दी गई।
- राष्ट्रपति को पूर्ण विचार का अधिकार प्रदान किया गया अर्थात राष्ट्रपति एक बार मंत्रिपरिषद की सलाह को पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है लेकिन पुर्नविचार के पश्चात पारित सलाह को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होगा।
- राष्ट्रीय आपात के लिए आन्तरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह का प्रावधान किया गया।
- अनुच्छेद 20 तथा अनुच्छेद 21 को आपातकाल के दौरान भी निलम्बित नहीं किया जा सकेगा।
61वां संविधान संशोधन (1989)-
इस संशोधन के माध्मय से अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा एवं विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण और 10 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
73वां संविधान संशोधन (1993)-
इस संविधान संशोधन में 11वीं अनुसूची, भाग -9 तथा अनुच्छेद 243 के पश्चात अनुच्छेद 243 A से 243 O तक, को जोड़ कर भारत में पंचायती राज्य की स्थापना का उपबन्धा किया गया ।
74वां संविधान संशोधन (1993) –
इस संविधान संशोधन में 12वीं अनुसूची तथा भाग-9 (क) जोड़कर नगरपालिका, नगर निगम तथा नगरपरिषदों से संबंधित प्रावधान किया गया।
86 वां संविधान संशोधन (2002)-
इसके अन्तर्गत यह उपबंध किया गया कि राज्य 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बालकों की देखभाल एवं निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध करेगा।
91वां संविधान संशोधन (2003) –
इस संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 75 तथा 164 में संशोधन कर मंत्रिपरिषद का आकार भी नियमित कर दिया गया। अब केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या लोक सभा तथा विधान सभा की कुल सदस्य संख्या का 15% से अधिक नहीं होगी।
101 वां संशोधन अधिनियम (2016) –
इसके माध्यम से वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (GST) को मान्यता प्रदान की गई।
102 वां संशोधन अधिनियम (2018) –
इसके माध्यम से अनुच्छेद 338 (B) जोड़ा गया तथा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
103 वां संशोधन अधिनियम (2019) –
इसके माध्यम से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) को नियुक्ति एवं पदों तथा शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण को मान्यता प्रदान की गई।
104वां संविधान संशोधन (2020) –
इस संशोधन के माध्यम से लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं में एंग्लो-इण्डियन की सीटों के आरक्षण को समाप्त कर दिया और SC व ST के लिए आरक्षण के दस वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
105 वां संविधान संशोधन (2021) –
19 अगस्त, 2021 को 105वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2021 अधिसूचित किया गया जिसका उद्देश्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने की राज्यों की शक्ति को बहाल करता है।