Chipko Andolan – चिपको आन्दोलन

चिपको आन्दोलन (Chipko Movement)

 

चिपको आन्दोलन (chipko andolan) की शुरूआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी ने शुरू किया था। इसके बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया था। सुन्दरलाल बहुगुणा को ‘वृक्ष मित्र’ और गौरा देवी को ‘चिपको विमेन’ के नाम से भी जाना जाता है।

 

चिपको आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए गांव के लोग पेडों से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा था। यह आन्दोलन हिमालय की ऊंची पर्वत श्रृंखला में गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले के ‘रेनी’ नामक गांव में हुआ था। गढ़वाल, उत्तराखण्ड राज्य का प्रमुख क्षेत्र है।

chipko andolan

ज्ञातव्य हो कि गढ़वाल उत्तर प्रदेश का क्षेत्र था। उत्तराखण्ड के अलग होने के बाद यह इस राज्य में आ गया। गढ़वाल की मुख्य भाषा गढ़वाली तथा हिन्दी है। गढ़वाल मण्डल के प्रमुख जिले देहरादून, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी आदि

चिपको आन्दोलन की शुरूआत 26 मार्च 1973 में चमोली जिले के रेनी नामक गाँव में पहली बार शुरू हुआ। यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एवं स्थानीय लोगों के बीच प्रारंभ हुआ क्योंकि गांव के समीप के वृक्षों को काटने का अधिकार ठेकेदारों को दे दिया गया था। वृक्षों को काटने हेतु आये लोगों को वृक्ष काटने से रोकने के लिए वहां के ग्रामीण लोगों, विशेषकर महिलाओं तथा बच्चों ने वृक्षों को घेर लिया था। धीरे-धीरे यह आन्दोलन उत्तर प्रदेश के अन्य भागों में भी फैल गया। जहां इसी प्रकार के संघर्ष द्वारा लोगों ने वृक्षों को काटने से बचाया।

आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य

चिपको आंदोलन के मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्वावलम्बन के लिए को का व्यापारिक दोहन को बंद किया जाए। प्राकृतिक संतुलन के लिए वृक्षारोपण के कार्यों को गति दी जाए।

चिपको आंदोलन की वजह से 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था। इस विधेयक में हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया था।

चिपको आन्दोलन का प्रभाव

यदि चिपको आन्दोलन की शुरूआत न हुई होती तो लकड़ी के ठेकेदार उस क्षेत्र के सारे वृक्षों को काट कर गिरा दिया होता और क्षेत्र सदा के लिए वृक्षहीन हो जाता। स्थानीय समुदाय, वृक्षों के ऊपर-चढ़कर कुछ शाखाएं एवं पत्तियां ही काटता है जिससे समय के साथ-साथ उनका पुनः पूरण होता रहता है।

इस अनुभव ने लोगों को सिखा दिया कि वनों के विनाश से केवल वन की उपलब्धता ही प्रभावित नहीं होती अपितु मिट्टी की गुणवत्ता एवं जल स्रोत भी प्रभावित होते हैं। स्थानीय लोगों की भागीदारी से निश्चित रूप से वनों के प्रबंधन की दक्षता बढ़ेगी।


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FAQ –

Ques – chipko andolan kya hai ?

चिपको आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए गांव के लोग पेडों से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा था।

Ques -चिपको आंदोलन के संस्थापक कौन थे?

चिपको आंदोलन की शुरूआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी ने शुरू किया था। इसके बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया था।

Ques – चिपको आंदोलन का क्या महत्व है?

यदि चिपको आन्दोलन की शुरूआत न हुई होती तो लकड़ी के ठेकेदार उस क्षेत्र के सारे वृक्षों को काट कर गिरा दिया होता और क्षेत्र सदा के लिए वृक्षहीन हो जाता। इस अनुभव ने लोगों को सिखा दिया कि वनों के विनाश से केवल वन की उपलब्धता ही प्रभावित नहीं होती अपितु मिट्टी की गुणवत्ता एवं जल स्रोत भी प्रभावित होते हैं।

Ques – चिपको आंदोलन कब और कहां हुआ था?

चिपको आन्दोलन की शुरूआत 26 मार्च 1973 में चमोली जिले के रेनी नामक गाँव में पहली बार शुरू हुआ।

Ques – चिपको आंदोलन का नारा क्या है?

चिपको आन्दोलन की शुरूआत 26 मार्च 1973 में चमोली जिले के रेनी नामक गाँव में पहली बार शुरू हुआ। महिलाओं ने एक नारा दिया था ” पहले हमें काटो “

Ques – चिपको आंदोलन का चित्र?

chipko andolan

 

 

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