1857 ki kranti – Revolt of 1857

1857 ki kranti मोटे तौर पर एक राजनीतिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य भारत से विदेसी शासन को दूर भगाना था। इस क्रांति का तात्कालिक कारण चर्बी लगे कारतूस थे। इन करतूसों के प्रयोग के खिलाफ सैनिको ने विद्रोह किया। 1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई को मेरठ से हुई जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम भी कहते है।

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1857 की क्रांति का प्रतीक –

क्रांति के प्रतीक के रूप में कमल और रोटी को चुना गया। कमल के फूल को उन सभी सैन्य टुकड़ियों तक पहुंचाया गया जो विद्रोह में शामिल थी तथा रोटी को एक गाँव का चौकीदार दूसरे गाँव तक पहुंचता था।

1857 ki kranti - Revolt of 1857

विद्रोह की योजना कहाँ- लंदन व भारत , किसके द्वारा- नाना साहब (धोंधूपंत ) के सलाहकार अजीजउल्ला खाँ व सत्तारा के राजा अप्पा साहब के सलाहकार रानोंजी बापू के द्वारा योजना बनाई गई ।

1857 की क्रांति के कारण-

ब्राउन बेस नामक राइफल के स्थान पर अनफील्ड नामक नई राइफल का प्रयोग जिसमे गाय व सूअर के चर्बी युक्त कारतूसों का प्रयोग किया गया। जिस कारण हिन्दू व मुसलमानों की धार्मिक भावनाए आहत हुई, और विद्रोह फूट पड़ा।

राजनीतिक कारण-

  • वेलेजली की सहायक संधियाँ ।
  • लार्ड डलहौजी की व्यक्तिगत नीति/हड़प नीति ।

ज्ञातव्य हो की अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर डलहौजी ने अवध को हड़प लिया था। इस समय अवध का शासक वाजिद अली शाह था।

सामाजिक व धार्मिक कारण-

  • 1813 के चार्टर अधिनियम के द्वारा ईसाई मिशनरी को भारत में ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार करने की अनुमत दी गई।
  • भारतियों को जबरन ईसाई बनाया जाने लगा।
  • लार्ड डलहौजी के 1850 ई॰ में पारित धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम मे प्रावधान किया गया कि ईसाई धर्म ग्रहण करने पर उसे पैतृक सम्पत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

सैन्य कारण-

  • 1854 का डाकघर अधिनियम के तहत भारतीय सैनिको कि निःशुल्क डाक सेवा को समाप्त कर दिया ।
  • सैनिको को समुद्र पर सेवा पर भेजना ( उस समय हिन्दू धर्म में समुद्र को पार करना धर्म के खिलाफ था। )
  • सैनिको को निम्न पदो पर नियुक्ति देना।
  • वेतन कि असमानता।

आर्थिक कारण-

  • भारतीय कुटीर उदद्योगों को समाप्त कर दिया गया।
  • बम्बई में इनाम कमीशन द्वारा बीस हजार जागीरें जब्त कर ली गई ।
  • अवध मे तालुकदारों से जमीनें छींन ली गई।

प्रशासनिक कारण-

भारतियों को उच्च पदों पर नियुक्ति नहीं दी जाती थी। जैसे – सूबेदार का पद, न्यायधीस का पद।

1857 की क्रांति प्रारम्भ-

ब्राउन बैस की जगह दिसम्बर 1856 के अंत मे भारत मे इनफील्ड राइफलों का प्रयोग शुरू हुआ इन राइफलों में बैरकपुर, दमदम और मेरठ मे बने चर्बी युक्त कारतूसों का प्रयोग किया जाता था। जिसमे गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी इन कारतूसों के ऊपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था जो हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों के धर्म के विरुद्ध था। चर्बी युक्त कारतूसों के प्रयोग के विरुद्ध पहली घटना 29 मार्च 1857 को बैरकपुर की छावनी में घटी जहां 34वीं एन आई रेजीमेंट के मंगल पांडे नामक एक सिपाही ने चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग से इंकार करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल ह्यूसन को गोली मारकर तथा लेफ्टिनेंट बाग को अपनी तलवार के एक ही वार से ह्त्या कर दी।

नोट – मंगल पाण्डे को चर्बी वाले कारतूसों के बारे में पहली जानकारी मातादीन ने दी थी।

मंगल पाण्डे –

मंगल पाण्डे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गाजीपुर (अब बलिया) जिले के रहने वाले थे। वे बंगाल स्थित बैरकपुर छावनीं की इन्फैन्ट्री के जवान थे। 9 अप्रैल 1857 को सैनिक अदालत के निर्णय के बाद मंगल पाण्डे को फांसी की सजा दे दी गई।

क्रांति का प्रसार –

10 मई 1857 को मेरठ से प्रारम्भ हुए क्रांति की ज्वाला देश के अन्य भागों में तेजी से फैलनें लगी आधुनिक उत्तर प्रदेश में जो उस समय उत्तर-पश्चिमी प्रांत और अवध के नाम से जाना जाता था, विद्रोह की भावना सबसे भयंकर रूप में प्रकट हुई। अन्य प्रान्तों में भी इसका प्रसार तेजी से हुआ परंतु दक्षिण भारत के क्षेत्रों में यह विद्रोह ज्यादा फैल न सका। मद्रास तो बिलकुल अछूता रहा जादातर जगहों पर सेना के साथ-साथ आम जनता ने भी भाग लिया। क्रांति के प्रमुख केंन्द्र  निम्नलिखित थे-

कानपुर –

कानपुर मे 5 जून 1857 को क्रांति की शुरुवात हुई यहाँ पर पेशवा बाजीराव दूतीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंधूपंत) ने विद्रोह का नेतृत्व किया। जिसमें उनकी सहायता तात्याटोपे ने की। कानपुर मे विद्रोहियों की मदद करने में शहर की वेश्या अजीजन का योगदान महत्वपूर्ण रहा। हैवलाक और जनरल नील ने कानपुर पर 20 जुलाई 1857 को पुनः अधिकार कर लिया।

लखनऊ –

लखनऊ मे 4 जून 1857 को विद्रोह की शुरुआत हुई। बेगम हजरत महल ने अपने अल्पआयु पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित किया तथा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजीडेंसी पर आक्रमण किया। लखनऊ के बाद बेगम हजरत महल ने मौलवी अहमदुउल्ला के साथ शाहजहाँपुर में भी विद्रोह का नेतृत्व प्रदान किया यहाँ वे शीघ्र पराजित हो गई और भाग कर नेपाल चली गई जहां उनकी मृत्यु हो गई। मार्च 1857 में कैम्पबेल ने यहाँ विद्रोह का दमन कर लखनऊ पर अधिकार कर लिया।

नोट – बेगम हजरत महल को उनके शौहर नवाब वाजिद आली शाह ने महकपरी के नाम से संबोधित किया था।

दिल्ली –

दिल्ली में 82 वर्षीय बहादुरशाह ने बख्त खाँन के सहयोग से विद्रोह का नेतृत्व किया। 20 सितम्बर 1857 को बहादुर शाह ने हुमायूँ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट हडसन के समक्ष समर्पण कर दिया।  बहादुर शह के साथ गिरफ्तार उसके दो पुत्र और पोते को हडसन के आदेश पर दिल्ली गेट के समीप गोली मार दी गई तथा बहादुर शाह को शेष जीवन पत्नी जीतन महल के साथ रंगून में निर्वासित हो कर बिताना पड़ा तथा 87 वर्ष की उम्र में वहीं उसकी मृत्यु हो गई।
  • रंगून (बर्मा) में स्थित बहादुर शाह की मजार पर लिखा है कि “जफर इतना बदनसीब है कि उसे अपनी मातृभूमि में दफन के लिए दो गज जमीन भी नसीब न हुई।”
  • दिल्ली में 1857 कि क्रांति के समय प्रसिद्ध उर्दू  शायर गालिब वहीं पर थे, उन्होने लिखा कि “यह मेरे सामने खून का विशाल समुद्र है और सिर्फ अल्लाह ही जानता है कि मुझे अभी क्या-क्या देखना है।”

झांसी –

झांसी में 4 जून, 1857 को रानी लक्ष्मी बाई के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई। रानी ने अपने साहसी नेतृत्व में अंग्रेजों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध किया तथा ग्वालियर में तात्याटोपे के साथ अंग्रेजी सेनापति ह्यूरोज से लड़ती हुई 17 जून 1858 को शहीद हो गई। रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु पर जनरल  ह्यूरोजने कहा “भारतीय क्रांतिकारियों में यहां सोयी हुई औरत अकेली मर्द है ।” इतिहासकार स्मिथ ने लक्ष्मीबाई को आधुनिक स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं में सबसे योग्य नेता कहा”

रानी लक्ष्मी बाई –

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी में हुआ। उन्हें मनिकर्णिका, मनु आदि नाम से भी जाना जाता है। इनका विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ। रानी के पुत्र का नाम दामोदर तथा दत्तक पुत्र ( गोद लिया हुआ पुत्र ) आनंदराव था। रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु 17 जून 1858 को हुआ।

तात्या टोपे –

तात्या टोपे का जन्म महाराष्ट्र के मेओला में हुआ।  इनका वास्तविक नाम “रामचन्द्र पांडुरंग “ था। ग्वालियर के पतन के बाद अप्रैल, 1859 में नेपाल चले गये, जहां पर एक जमींदार मित्र मानसिंह के विश्वासघात के कारण पकड़े गये तथा 18 अप्रैल 1859 को फाँसी पर लटका दिये गये। तात्या टोपे की गिरफ्तारी मध्य भारत में 1857 की क्रांति की अंतिम घटना थी।

जगदीशपुर (बिहार) –

जगदीशपुर के प्रमुख जमींदार कुंवर सिंह ने 1857 की क्रांति के समय विद्रोह का झण्डा फहराया । अदम्य साहस, वीरता और सेनानायकों जैसे आदर्श गुणों के कारण 1857 की क्रांति के समय 80 वर्षीय कुंवर सिंह को बिहार का शेर कहा गया।

इलाहाबाद –

इलाहाबाद में विद्रोह मौलवी लियाकत अली के नेतृत्व में हुए। विद्रोह को अंग्रेज जनरल नील ने 7 जून 1858 को दबाया।
Note – लोर्ड कैनिंग ने 1857 के विद्रोह के समय इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया।

उपरोक्त स्थानों के अलावा निम्न स्थानों पर विद्रोह हुआ – फैजाबाद, बरेली, असम, कोटा (राजस्थान), उड़ीसा, पंजाब आदि।

विद्रोह के केंद्र नेतृत्वकर्ता विद्रोह कुचलने वाला अधिकारी
कानपुर नाना साहब तथा तात्या टोपे कैंपबेल
लखनऊ बेगम हजरत महल कैंपबेल तथा हेनरी लारेंस
दिल्ली बहादुरशाह जफर तथा बख्त खान निकोलसन तथा हडसन
इलाहाबाद लियाकत अली कर्नल नील
जगदीशपुर कुंवर सिंह तथा अमरसिंह विलियम टेलर
बरेली खान बहादुर खाँ कैंपबेल
झाँसी रानी लक्ष्मी बाई हयूरोज
फैजाबाद अहमदुल्ला कैंपबेल

 

प्रमुख नोट –

  • 1857 की क्रांति में सर्वाधिक सैनिक अवध के थे। अवध को सैनिकों की पौधशाला कहा जाता था।
  • क्रांति के दौरान बुंदेलखण्ड क्षेत्र में महिलाओं द्वारा घाघरा लटन की स्थापना की गई थी।
  • 1857 की क्रांति में व्यापारी, पढे-लिखे लोग, जमींदार तथा भारतीय शासकों ने हिस्सेदारी नहीं ली।
  • विद्रोह के समय ग्वालियर के सिंधिया से अंग्रेजों ने सर्वाधिक सहायता ली। कैनिंग ने इसके बारे में कहा था कि “यदि सिंधिया भी विद्रोह में शामिल हो जाएं तो मुझे कल ही बोरिया-बिस्तर गोल करना होगा”।

क्रांति की असफलता के कारण :-

विद्रोह की असफला के कई कारण थे जिनमें प्रमुख था एकता, संगठन और संसाधनों की कमी। विद्रोह की न तो कोई सुनियोजित योजना थी न क्रार्यक्रम, इसलिए यह सीमित, असंगठित और स्थानीय होकर रह गई।

1857 की क्रान्ति पर लिखी गई पुस्तकें –

  • बी.डी. सावरकर – सावरकर की पुस्तक ‘फस्ट वार ऑफ इण्डियन इंडिपेंडेंस ‘ (भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) मूलता मराठी भाषा में लिखी गई थी। यह पुस्तक सावरकर ने अंडमान स्थित सेलुलर जेल में कैदी के रूप में  रहते हुए लिखी।
  • अशोक मेहता – द ग्रेट रिबैलियान
  • सैय्यद अहमद – कॉजेज ऑफ द इंडियन म्यूटिनी
  • सुरेंद्रनाथ सेन – 1857 (एटीन फिफ्टी सेवन)। डॉ० सेन को 1857 के स्वाधीनता संग्राम का सरकारी इतिहासकार भी माना जाता है। इन्होने 1857 पुस्तक भारत सरकार के कहने पर लिखी ।

विशेष – 1857 के विद्रोह के समय-

  • भारत के गवर्नर जनरल – लार्ड कैनिंग
  • मुगल बादशाह – बहादुर शाह द्वितीय
  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री – लार्ड पामर्स्टन (लिबरल पार्टी)
  • कंपनी का प्रधान सैनिक – अनीसन

क्रांति का महत्व :-

1857 की क्रान्ति की असफलता ने भारतीयों को यह सिखा दिया कि सिर्फ सेना और शक्ति के बल पर ही अंग्रेजों से मुक्ति नहीं मिल सकती बल्कि सभी वर्गों का सहयोग, समर्थन और राष्ट्रीय भावना की आवश्यक है। 1857 की क्रान्ति से ही भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण हुआ। भारतीय इतिहास में यहीं से संवैधानिक विकास का सूत्रपात्र हुआ और धीरे-धीरे भारतीयों को अपने देश में शासन में भाग लेने का अवसर दिया जानें लगा।

क्रान्ति का परिणाम –

यद्यपि 1857 की क्रान्ति असफल रही लेकिन इसका तात्कालिक और दूरगामी परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस विद्रोह के बाद मुगल साम्राज्य हमेशा के लिए समाप्त हो गया। इस विद्रोह का एक अन्य परिणाम था महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र, की निम्न बातें-

* भारतीय शासन की बागडोर कम्पनी के हाथों से निकल कर क्राउन के हाथों में चली गयी।

* गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा।

* सरकार अब भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।

* भारतीय सैनिकों की संख्या और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात विद्रोह के पूर्व 5:1 , से घटाकर 2:1 कर दिया।

* भविष्य में कोई भी राज्य अंग्रेजी राज्य में नही मिलाया जाएगा। सरकार ने डलहौजी के हड़पने की नीति त्याग दी।

Note:- 1857 की क्रांति के मामले की जांच हेतु पील कमीशन को नियुक्त किया गया।

1857 की क्रांति के विद्रोह में हि-दुओं और मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया। अंग्रेजों ने मुस्लिम सम्प्रदायिकता का सहारा लिया तथा दोनों सम्प्रदायों को एक-दूसरे से लड़ाकर राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया। इसका अंतिम परिणाम भारत के विभाजन के रूप में देखने को मिला।

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FAQ – 

Ques – 1857 की क्रांति का मुख्य कारण क्या था?

ब्राउन बेस नामक राइफल के स्थान पर अनफील्ड नामक नई राइफल का प्रयोग जिसमे गाय व सूअर के चर्बी युक्त करतूनसों का प्रयोग किया गया जिस कारण हिन्दू व मुसलमानो की धार्मिक भावनाए आहत  हुई,और विद्रोह फूट पड़ा ।

Ques – 1857 की क्रांति की शुरुआत कहाँ से हुई थी?

1857 की क्रांति 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुई ।

Ques – 1857 की क्रांति को किसने क्या कहा?

भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम – बी॰डी॰ सावरकर

पूर्णता सिपाही विद्रोह – लारेंस और सीले

राष्ट्रीय विद्रोह – डिज़रायली

बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध – जे॰आर॰ होम्स

  • दिल्ली में 1857 कि क्रांति के समय प्रसिद्ध उर्दू  शायर गालिब वहीं पर थे, उन्होने लिखा कि “यह मेरे सामने खून का विशाल समुद्र है और सिर्फ अल्लाह ही जानता है कि मुझे अभी क्या-क्या देखना है।”
  • विद्रोह के समय ग्वालियर के सिंधिया से अंग्रेजों ने सर्वाधिक सहायता ली। कैनिंग ने इसके बारे में कहा था कि “यदि सिंधिया भी विद्रोह में शामिल हो जाएं तो मुझे कल ही बोरिया-बिस्तर गोल करना होगा।
  • रंगून(बर्मा) में स्थित बहादुर शाह की मजार पर लिखा है कि “जफर इतना बदनसीब है कि उसे अपनी मातृभूमि में दफन के लिए दो गज जमीन भी नसीब न हुई।”

Ques – 1857 की क्रांति कब हुई थी?

10 मई 1857

Ques – 1857 ki kranti के समय गवर्नर जनरल कौन था?

लोर्ड विलियम कैनिंग

Ques – 1857 के विद्रोह का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

1857 की क्रान्ति से ही भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण हुआ। भारतीय इतिहास में यहीं से संवैधानिक विकास का सूत्रपात्र हुआ और धीरे-धीरे भारतीयों को अपने देश में शासन में भाग लेने का अवसर दिया जानें लगा।

Ques – 1857 के विद्रोह का परिणाम क्या था?

यद्यपि 1857 की क्रान्ति असफल ही लेकिन इसका तात्कालिक और दूरगामी परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस विद्रोह के बाद मुगल साम्राज्य हमेशा के लिए समाप्त हो गया। इस विद्रोह का एक अन्य परिणाम था महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र, की निम्न बातें-
  •  भारतीय शासन की बागडोर कम्पनी के हाथों से निकल कर क्राउन के हाथों में चली गयी।
  • गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा।
  • सरकार अब भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।
  • भारतीय सैनिकों की संख्या और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात विद्रोह के पूर्व 5:1 से घटाकर 2:1 कर दिया।
  • भविष्य में कोई भी राज्य अंग्रेजी राज्य में नही मिलाया जाएगा। सरकार ने डलहौजी के हड़पने की नीति त्याग दी।

Ques –1857 की क्रांति के जनक कौन थे?

शहीद धनसिंह गुज्जर

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