गोलमेज सम्मेलन | Golmej Sammelan

दोस्तों आज हम गोलमेज सम्मेलन (Golmej Sammelan) के बारे में बहुत ही गहन अध्यन करेंगे। किसी भी टॉपिक को अच्छी तरह से समझने के लिए उस टॉपिक से संबंधि अन्य टॉपिकों की संक्षिप्त जानकारी जरूरी होती है। इस लिए गोलमेज सम्मेलन से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण टॉपिकों का भी जिक्र किया गया है।

Golmej Sammelan

प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर 1930 – 13 जनवरी 1931 तक) (Pratham Golmej Sammelan)

27 मई, 1930 ई. को साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। राजनीतिक दलों ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया । इस समय कांग्रेस के अधिकांश नेता जेल में थे। ब्रिटिश सरकार ने निराशा और असंतोष के चलते नवम्बर, 1930 में लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में कुल 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया परन्तु कांग्रेस ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया। इस सम्मेलन में सेंट जेम्स पैलेस में भारतीय नरेशों, दलितवर्ग, हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जमींदार, श्रमिक संघो आदि प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। इस प्रथम गोलमेज सम्मेलन को 12 नवम्बर 1930 को ब्रिटिश सम्राट ने सम्मेलन का उद्घाटन किया तथा ब्रिटिश प्रधान मंत्री मैकडोनाल्ड ने इसका सभापतित्व किया।

इस सम्मेलन में भारतीय नरेशों ने अखिल भारतीय संघ की स्थापना के लिए ब्रिटिश भारत में सामिल होने का प्रस्ताव दिया। मुस्लिम प्रतिनिधियों ने पृथक निर्वाचन की माँग की। अम्बेडकर ने दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की। ब्रिटिश सरकार ने, अखिल भारतीय संघ का निर्माण तथा प्रदेशों में पूर्ण उत्तरदायी शासन और केन्द्र में द्वैध शासन पर सहमत हुई।

26 जनवरी 1931 में गांधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया तेज बहादुर सप्रु व जयकर के प्रयासों से गांधी व इरविन के मध्य समझौता हुआ। इस समझौते को गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है। यह समझौता मार्च 1931 ई. को हुआ था।

Note :- 5 मार्च 1931 में दिल्ली में हुए गांधी-इरविन समझौते को दिल्ली समझौता या दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है।इस समझौते में सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करना, सभी कैदियों की रिहाई तथा समुद्र के किनारे, स्थानों पर नमक का निर्माण करना आदि शर्तें शामिल थी।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – (7 सितम्बर 1931 से 1 दिसम्बर 1931 तक) (2nd Golmej Sammelan)

दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर 1931 से दिसम्बर 1931 तक लंदन में आयोजित हुआ। गांधी जी राजपूताना नामक जहाज से लंदन पहुंचे। गांधीजी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। इस सम्मेलन में गांधी जी कांग्रेस का प्रतिनिधित्व  करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कुल 31 प्रतिनिधि थे। सरोजनी नायडू व मदन मोहन मालवीय को कांग्रेस ने अपनी तरफ से सम्मेलन में भाग लेने हेतु मनोनीत किया परन्तु यह दोनों गवर्नर जनरल के विशेष प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। भारत से अन्य प्रमुख लोग जिन्हेने दूसरे गोल मेज सम्मेलन में भाग लिया था – B. R. अम्बेडकर राजपुतानों के राजा गंगा सिंह, अली इमाम, मोहम्मद इकबाल, घनश्यामदास बिड़ला, s॰ k दत्ता आदि।

इस सम्मेलन में साम्प्रदायिक समस्या उभरकर सामने आई। मुख्य समस्या अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से सम्बंधित थी। हिंदू वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वालों ने उत्तरदायी सरकार की मांग की परन्तु जिन्ना तथा आंगा खाँ ने इस बात का विरोध किया। मुसलमानों तथा अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए पृथक निर्वाचन की माँग की । पृथक निर्वाचन की मांग अब न केवल मुसलमान बल्कि दलित जातियों, भारत के ईसाई, ऐंग्लो इंडियन और यूरोपियन भी करने लगे थे। ये सभी मिलकर ”अल्पसंख्यक समझौते” के रूप में एक जुट हो गए। गांधी जी से औपनिवेशिक स्वराज की मांग की 1 दिसम्बर 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया।

गांधी जी भारत वापस लौटने के बाद जनता को संबोधित किया और कहा “मैंने भारतीय ध्वज को झुकने नही दिया, उसके सम्मान के साथ समझौता नहीं किया। इसके बाद इसके बाद गांधी जी ने पुन: सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया ।

द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन – ( 1932-1934 )

1 जनवरी, 1932 को कांग्रेस कार्यसमिति ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को दोबारा शुरू करने का निर्णय किया। 4 जनवरी को आन्दोलन शुरू होने के शीघ्र बाद प्रमुख नेता गांधी जी, नेहरू, खान अब्दुल गफ्फार आदि को गिरफ्तार कर सरकार ने कांग्रेस को गैर कानूनी संस्था घोषित कर उसकी सम्पत्ति को जब्त कर लिया। सरकार ने द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय करीब 90 हजार पुरुष और महिला आन्दोलनकारियों को जेल भेजा। द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने पहले सविनय अवज्ञा आन्दोलन से भी अधिक कठोर दमन चक्र चलाया। जिस समय आन्दोलन अपने चरम पर था उसी समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने अपने प्रसिद्ध ‘साम्प्रदायिक पंचाट’ (अधिनियम) की घोषणा कर आन्दोलन की दिशा बदल दी।

साम्प्रदायिक पंचाट (Samprdaik Panchat)

ब्रिटिश प्रथम मंत्री मैकडोनाल्ड ने 18 अगस्त, 1932 को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर एक पंचाट जारी किया जिसे साम्प्रदायिक पंचाट (कम्युनल एवार्ड) कहा गया। इस पंचाट में पृथक निर्वाचन पद्धति को न केवल मुसलमानों और सिखों के लिए जारी रखा गया बल्कि इसे दलित वर्गो पर भी लागू कर दिया गया। दलित वर्ग को पृथक चुनाव क्षेत्र की सुविधा प्रदान करने के पीछे अंग्रेजों की गहरी चाल थी। वे मुसलमानों को हिन्दुओ से अलग करना चाहते थे। दलित वर्ग को पृथक निर्वाचन मण्डल की सुविधा दिये जाने के विरोध में महात्मा गांधीजी जो उस समय पूना के यरवदा जेल में थे। गांधीजी ने 20 सितम्बर 1932 को अपना प्रथम आमरण अनशन शुरू कर दिया।

पूना पैक्ट या पूना समझौता (Puna Pact or Puna Samjhauta)

मदन मोहन मालवीय, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास, सी० राजगोपालाचारी आदि के प्रयत्नों से गांधी के उपवास के 5 दिन बाद 26 सितम्बर 1932 को गांधी और दलित नेता अम्बेडकर के बीच ” पूना समझौता “ हुआ। इस समझौते को “यरवदा समझौता” भी कहा जाता है। पूना पैक्ट पर दलित वर्ग की ओर से डॉ. अम्बेडकर ने तथा दूसरी ओर से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए। महात्मा गाँधी ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया था। समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य नेताओ में सर तेज बहादुर सप्र, M.R. जयकर, देवदास गांधी, G.D. बिड़ला, राजगोपालाचारी, राजेन्द्र प्रसाद, राव बहादुर श्रीनिवासन, M.c. राजा, C.v. मेहता तथा विश्वास राजभोज आदि शामिल थे। सी. राजगोपालाचारी ने समझौते के उपरान्त अपनी पेन को अम्बेडकर की पेन से बदल लिया था। पूना पैक्ट के अनुसार ‘दलितों के लिए पृथक निर्वाचन व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा विभिन्न प्रान्तीय विधान मण्डलों में दलित वर्ग के लिए 71 की जगह 148 सीटें आरक्षित की गई, दूसरी ओर केंद्रीय विधान मण्डल में 18 प्रतिशत सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित की गई।

द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन का स्थगन

पूना समझौता के बाद गांधी जी की रुचि अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन के प्रति अधिक हो गई, इसी समय उन्होंने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की। इस संघ के प्रथम अध्यक्ष घनश्याम दास बिड़ला थे। 8 मई 1933 को गांधी जी अछूतों के प्रति हिन्दुओं के दुर्व्यवहार पर पश्चताप तथा हरिजन सेवा में लगे कार्यकर्ताओं के प्रति देश से अस्पृश्यता को जड़ सहित समाप्त करने के उद्देश्य से जेल में शुद्धि के लिए 21 दिन के उपवास की शुरुआत की। उपवास शुरू होने के शीघ्र बाद सरकार ने गांधी जी को जेल से रिहा कर दिया, रिहाई के बाद गांधी जी मई, 1933 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को 12 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।

1 अगस्त 1933 को गांधी जी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया, इस आन्दोलन को इसके निराशाजनक स्वरूप के कारण शीघ्र ही समाप्त घोषित कर दिया गया। अक्टूबर 1934 को विठ्ठल भाई पटेल और सुभाष चन्द्रबोस ने गांधी जी को राजनीतिक नेता के रूप में असफल घोषित किया।

अम्बेडकर ने गांधी जी को कहा- “महात्मा गांधी क्षणिक भूत की तरह धूल उड़ाते हैं. स्तर नहीं उठाते।”

1934 में गांधी जी ने कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और सक्रीय राजनीति से संन्यास की घोषणा की।

गांधी जी और हरिजनों का उत्थान

1932 में गांधी जी ने हरिजनों के कल्याण हेतु “अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग” की स्थापना की तथा “हरिजन “ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशत किया। बाद में इस लीग को हरिजन सेवक संघ कहा गया। उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला हरिजन सेवक संघ के संस्थापक अध्यक्ष तथा अमृतलाल ठक्कर इसके संस्थापक सचिव थे। दलितों के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गुजराती संत नरसी मेहता ने किया था। परन्तु इस शब्द को प्रचलित करने का श्रेय गांधी जी को दिया जाता है।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन -(1932) (Tritiya Golmej Sammelan)

इस सम्मेलन में कुल 46 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम 1935 हेतु ठोस योजना के अंतिम स्वरूप को पेश किया गया। यह सम्मेलन 17 नवम्बर से 24 दिसम्बर 1982 तक चला। सम्मेलन की समाप्ति पर एक श्वेत पत्र भी जारी किया गया। इस पर विचार हेतु लार्ड लिनलिथिगों की अध्यक्षता में ब्रिटिश संसद की एक समिति गठित की गई। समिति की रिपोर्ट के आधार पर भारत शासन अधिनियम 1935 जारी किया गया।


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नोट – डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर और तेज बहदुर सप्रू तीनों गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेता थे।

निष्कर्ष:- दोस्तों मैं उम्मीद करता हूँ कि यह लेख आप सब को पसंद आया होगा। यदि आपको लेख में किस भी प्रकार की मनवीय, त्रुटि दिखी हो या लेख से संबंधित कोई अन्य सुझाव हो तो आपका स्वागत है। हमें कमेंट कर के बता सकते हैं.

FAQ

Ques – तीनो गोलमेज सम्मेलन कब हुए थे?

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर 1930 – 13 जनवरी 1931 तक)
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – (7 सितम्बर 1931 से 1 दिसम्बर 1931 तक)
  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन -(1932)

Ques -प्रथम गोलमेज सम्मेलन कब और कहाँ हुआ था?

27 मई, 1930 ई. को साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। राजनीतिक दलों ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया । इस समय कांग्रेस के अधिकांश नेता जेल में थे। ब्रिटिश सरकार ने निराशा और असंतोष के चलते 12 नवम्बर 1930 में लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर 1930 – 13 जनवरी 1931 तक) बुलाया।

Ques -तीनो गोलमेज सम्मेलन में कौन भाग लिया था?

डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर और तेज बहदुर सप्रू तीनों गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेता थे।

Ques -प्रथम गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य क्या था?

इस सम्मेलन में भारतीय नरेशों ने अखिल भारतीय संघ की स्थापना के लिए ब्रिटिश भारत में सामिल होने का प्रस्ताव दिया। मुस्लिम प्रतिनिधियों ने पृथक निर्वाचन की माँग की। अम्बेडकर ने दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की। ब्रिटिश सरकार ने, अखिल भारतीय संघ का निर्माण तथा प्रदेशों में पूर्ण उत्तरदायी शासन और केन्द्र में द्वैध शासन पर सहमत हुई।

Ques -द्वितीय गोलमेज सम्मेलन कहाँ हुआ?

दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर 1931 से दिसम्बर 1931 तक लंदन में आयोजित हुआ। गांधी जी राजपूताना नामक जहाज से लंदन पहुंचे।

Ques -गोलमेज सम्मेलन के अध्यक्ष कौन थे?

इस प्रथम गोलमेज सम्मेलन को 12 नवम्बर 1930 को ब्रिटिश सम्राट ने सम्मेलन का उद्घाटन किया तथा ब्रिटिश प्रधान मंत्री मैकडोनाल्ड ने इसका सभापतित्व किया।

Ques -दूसरा गोलमेज सम्मेलन क्यों विफल हुआ?

इस सम्मेलन में साम्प्रदायिक समस्या उभरकर सामने आई। पृथक निर्वाचन की मांग न केवल मुसलमान बल्कि दलित जातियों, भारत के ईसाई, ऐंग्लो इंडियन और यूरोपियन भी करने लगे थे। ये सभी मिलकर ”अल्पसंख्यक समझौते” के रूप में एक जुट हो गए। गांधी जी से औपनिवेशिक स्वराज की मांग की 1 दिसम्बर 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया।

Ques -महात्मा गांधी ने कितने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया?
महात्मा गांधी जी केवल दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था।

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