वर्ण विचार | varn vichar

दोस्तों आज हम इस लेख मे वर्ण विचार (varn vichar) या वर्णमाला का अध्यन बहुत ही गहराई से करेंगे। वर्ण विचार किसी भी परिक्षा में सर्वाधिक पूछा जाने वाला टापिक है। यदि वर्णमाला अच्छे से समझ ले तो हमे संधि भी बहुत आसानी से समझ आजाएगा। यदि आप इस लेख को ध्यान से पड़ेगे तो मै आप को विश्वास दिलाता हूँ कि आपके हिन्दी वर्णमाला के पाठ्यक्रम से परिक्षा में कोई भी प्रश्न नहीं गलत होगा।

Table of Contents

Varn Vichar

वर्ण विचार (Varn Vichar)

ध्वनि के लिखित रूप को वर्ण कहते हैं। वर्ण वह सबसे छोटी ध्वनि है जिसके तुकड़े नही किए जा सकते।  

ध्वनि (Dhvani)

अ, आ, इ, ई आदि जब मनुष्य की वागिन्द्रि (जीभ) द्वारा व्यक्त होते हैं। तब ये ध्वनियां कहलाती है। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है।

वर्णमाला (Varnmala)

वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। मूलतः हिन्दी में 52 वर्ण है। उच्चारण की दृष्टि से हिन्दी वर्णमाला को दो भागों में बांटा गया है। 1. स्वर 2. व्यंजन।

स्वर (Swar)

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में कुल 11 स्वर हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।

स्वर का वर्गीकरण

ह्रस्व स्वर / मूल स्वर (Mool Swar)

जिन स्वरों की उत्पत्ति दूसरे स्वरों से नहीं हुई है। उन्हें मूल स्वर कहते हैं। ये एक मात्रिक कहलाते हैं – अ, इ, उ, ऋ।

दीर्घ स्वर (Dirgh Swar)

किसी मूल या ह्रस्व को उसी स्वर के साथ मिलाने पर जो स्वर बनता है। वह दीर्घ स्वर कहलाता है। आ (अ+अ), ई (इ+इ ), ऊ (उ+उ) ।

संयुक्त स्वर (Sanyukt Swar)

ऐसे मूल स्वर जो किसी अन्य मूल से मिलकर बने हों संयुक्त स्वर कहलाते हैं। ए (अ+ई), ऐ (अ+ए) ,ओ (अ +उ), औ (अ +ओ)।

व्यंजन (Vyanjan)

स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते है। हिन्दी वर्ण माला में कुल 33 व्यंजन हैं।

क वर्ग (कंठ) – ख, ग, घ, ड।

च वर्ग (तालु ) – च, छ, ज, झ, ञ।

ट वर्ग (मूर्द्धा) – ट, ठ, ड़, ढ, ण।

त वर्ग (दंत) – त, थ, द, ध, ल, न।

प वर्ग (ओष्ठ) – प, फ, ब, भ, म।

अन्त: व्यंजन (Antah Vyanjan) 

य, र, ल, व।

ऊष्म व्यंजन (Ushm Vynjan) 

श, ष, ष, ह।

संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vynjan)

क्ष ( क्+ष), त्र ( त्+र) ज्ञ ( ज्+ञ) श्र ( श्+र)।

द्विगुण या उत्क्षिप्त व्यंजन (Utcshipt vyanjan)

ड़, ढ।

  • अनुस्वार (Anuswar) – ( .)
  • विसर्ग (Visarg) – ( : )

टिप्पणी – आचार्य किशोरी दास वाजपेयी के अनुसार अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर है न व्यंजन इन दोनों ध्वनियों को अयोगवाह कहते हैं। अयोगवाह का अर्थ है – योग न होने पर भी साथ रहे।

अल्पप्राण (AlpPran)

जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है। वहाँ अल्पप्राण होता है। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीरा, पांचवां वर्ण + अन्तःस्थ व्यंजन।

महाप्राण (Mahapran) 

जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। वहां महाप्राण होता है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण + ऊष्म व्यंजन।

घोष या सघोष – (Ghosh)

प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां वर्ण + सारे स्वर वर्ण + अंतस्थ व्यंजन + ह।

अघोष (Aghosh)

प्रत्येक वर्ग का पहला, दूसरा + श, ष, स।

  • स्पर्श संघर्षी व्यंजन (Sparsh Sangharshi Vyanjan) – च, छ, ज, झ।
  • संघर्षी व्यंजन (Sangharshi Vyanjan) – श, ष, स।
  • पार्षिक व्यंजन (Parshvik Vyanjan) – ल।
  • प्रकम्पित व्यंजन या लुंठित व्यंजन (Lunthit Vyanjan) – र।
  • अर्द्ध स्वर (Ardh Swar) – य, व।
  • संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan) – ये मूलत: व्यंजन नहीं है ये संयुक्त व्यंजन है ये दो व्यंजन वर्णों के संयोग से बनते है। ये स्वतंत्र व्यंजन नहीं है।   क्ष ( क्+ष), त्र ( त्+र) ज्ञ ( ज्+ञ) श्र ( श्+र)।

 वर्णो का उच्चारण

कोई भी वर्ण मुख के भिन्न-भिन्न भागों से बोला जाता है, इन्हें उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख (मुह) के छ: भाग है। 1. कंठ, 2. तालु, 3. मुर्द्धा, 4. दांत, 5. नाक, 6. ओष्ठ। हिन्दी के सभी वर्ण इन्ही से अनुशासित और उच्चरित होते हैं।

varn vichar

  • कंठ्य – कंठ और निचली जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण – क वर्ग + अ, आ + विसर्ग + ह।
  • तालव्य – तालु और जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण – च वर्ग + इ, ई+ श+ य।
  • मुर्द्धन्य- मुद्धि और जीभ के स्पर्श से बोछे जाने वाले वर्ग – ट वर्ग + ऋ + र + ष
  • दन्त्य –  दांत और जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण – त वर्ग + ल, स।
  • ओष्ठ्य – दोनो होठो के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण -प वर्ग + उ, ऊ।
  • कंठ्य तालव्य – कंठ और तालु में जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण – ए, ऐ।
  • कंठोष्ठय – कंठ द्वारा जीभ और ओठों के कुछ स्पर्श से बीले जाने वाले वर्ण – ओ, औ ।
  • दंतोष्ठ्य – दांत से जीभ और ओठों के योग से बोला जाने वाला वर्ण – व।

स्वर का उच्चारण

जीभ के प्रयोग के आधार पर – 1. अग्र स्वर,  2. मध्य स्वर, 3. पश्च स्वर।

  • अग्र स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्रभाग काम करता है। उसे अग्र स्वर कहते है। जैसे- इ, ई, ए, ऐ।
  • मध्य स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग काम करता है। उसे मध्य स्वर कहते हैं। जैसे- अ
  • पश्च स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग काम करता है उसे पश्च स्वर कहते है – जैसे- आ, उ, ऊ, ओ, औ, आँ।

हिन्दी के स्वरों का वर्गीकरण 

  • अग्र संवृत-
  • अग्र अर्धसंवृत-
  • अग्र अर्द्ध विवृत-
  • अग्र विवृत- अ s
  • पश्च विवृत-
  • पश्च अर्ध विवृत-
  • पश्च अर्ध संवृत-
  • पश्च संवृत- ऊ

संयुक्ताक्षरों का उच्चारण –

हिन्दी में संयुक्ताक्षरों का प्रयोग और उच्चारण के तीन रीतियां है।

1. संयुक्त ध्वनियां

2. सम्पृक्त ध्वनियां

3. युगमक ध्वनियां

1. संयुक्त ध्वनियां 

दो या दो से अधिक व्यंजन ध्वनियां परस्पर संयुक्त होकर जब एक स्वर के सहारे बोली जाएं तो संयुक्त ध्वनियां कहलाती है। अधिकतर संयुक्त ध्वनियां तत्सम शब्दों में मिलती है। शब्द के आरम्भ में ध्वनियां प्राय: पायी जाती है। मध्य और अन्त में अपेक्षाकृत कम। जैसे – ‘प्रारब्ध’ शब्द में ध्वनियों का संयुक्ती करण आरम्भ और अन्त में हुआ है। अन्य उदा० क्लान, क्लान्त व्रण, प्राण, प्रवाद, प्रकर्ष, घ्राण।

2. सम्पृक्त ध्वनियां 

एक ध्वनि जब दो व्यंजनो से  संयुक्त हो जाए तब वह सम्पृक्त ध्वनि कहलाती है जैसे – सम्बल यहां ‘स’ और ‘ब’ ध्वनियों के साथ म् ध्वनि संयुक्त हुई हैं।

3. मुगमक ध्वनियां

जब एक ही ध्वनि का द्वित्व ( दो की संख्या या दो होने की स्थिति ) हो जाए तब वह युगमक ध्वनि कहलाती है जैसे- प्रश्नत्ता दिक्कत, अक्षुण्ण, दिल्ली, उत्फुल्ल।

हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnmala) – तथ्यात्मक

स्वर (Swar) –

  • ह्रस्व – अ, इ, उ, ऋ। (संख्या – 4)
  • दीर्घ – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ (संख्या – 7)

व्यंजन (Vyanjan) –

  • स्पर्श व्यंजन – क वर्ग से प वर्ग तथा ड़, ढ़ (संख्या -27)
  • अंत:स्थ व्यंजन – य, र, ल, व (संख्या -4)
  • ऊष्म व्यंजन – श, ष, स, ह। (संख्या -4)
  • आगत व्यंजन – ज़, फ़ (संख्या – 2)
  • संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।  (संख्या – 4)

नोट-

  • स्वरों की संख्या = 11
  • कुल व्यंजनों की संख्या = 41
  • कुल वर्ण = 52
  • जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है, उन्हें  स्वर कहते हैं।
  • जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हे ह्रस्व स्वर कहते हैं।
  • जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
  • ह्रस्व स्वर- अ, इ, उ, ऋ।
  • मूल स्वर – अ, इ, उ, ऋ।
  • दीर्घ स्वर – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
  • दीर्घ संधि स्वर – आ, ई, ऊ।
  • संयुक्त स्वर – ए, ऐ , ओ, औ।
  • आगत स्वर – ऑ।
  • अग्र स्वर – इ, ई, ए, ऐ।
  • मध्य स्वर – अ ।
  • पश्च स्वर – आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ।
  • संवृत स्वर – इ, ई, उ, ऊ।
  • अर्द्ध विवृत – ए, अ, ओ, ऑ।
  • कुल व्यंजनों की संख्या – 41
  • मूल व्यंजनों की संख्या – 33
  • स्पर्श व्यंजनों की संख्या – 25
  • उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या –2
  • अंतःस्थ व्यंजनो की संख्या – 4
  • ऊष्म व्यंजनों की संख्या – 4
  • आगत व्यंजनों की संख्या – 2
  • संयुक्त व्यंजनों की संख्या – 4
  • संयुक्त व्यंजन – क्ष ( क्+ष), त्र (त्र_+र), ज्ञ (ज्+ञ), श्र (श्+र)।
  • अन्तःस्थ व्यंजन – य, र, ल, व।
  • उष्म व्यंजन – श, श, ष, ह।
  • आगत व्यंजन – ज़, फ़
  • संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
  • अर्धस्वर – य, व।
  • लुंठित व्यंजन – र।
  • पार्श्विक व्यंजन –
  • ऊष्म संघर्षी व्यंजन – स, श, ष, ह।
  • उत्क्षिप्त व्यंजन – ड़, ढ़ ।

वर्ण विचार (Varn Vichar)

  • स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
  • अनुस्वर – अं
  • अनुनासिका – अँ
  • विसर्ग- अ:
  • आगत ध्वनियां – अर्ध चंद्र( u), नुक्ता (.)।

व्यंजन :

  • क वर्ग – क, ख, ग, घ, ड।
  • च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ।
  • ट वर्ग – ट, ठ, ड़, ढ, ण।
  • त वर्ग – त, थ, द, ध, न।
  • प वर्ग – प, फ, ब, भ, म।
  • अन्त:स्थ – य, र, ल, व।
  • ऊष्म – श, ष, स, ह।
  • संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
  • पंचम वर्ण – ङ, ञ, ण, न, म ।
  • सघोष व्यंजन – प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा ड़, ढ़, ज़, य, र, ल, व, ह एवं सभी स्वर सघोष हैं।
  • अघोष व्यंजन – प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा फ़, श, ष, स।
  • अल्पप्राण व्यंजन – प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण तथा अन्त:स्थ वर्ण (य, र, ल, व)।
  • महाप्राणव्यंजन – प्रत्येक वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ वर्ण तथा ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह)।
  • अयोगवाह – अनुस्वार ( . ), विसर्ग  ( : )।

अनुस्वार और अनुनासिक में अन्तर –

 

अनुस्वार

अनुनासिक

अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक सांस निकलती है और मुख से कम, जैस - रंग, भंग, अंक आदि।

अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम सोस निकलती है।

अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। क्योंकि यह एक व्यंजन ध्वनि है।

अनुनासिक स्वरों पर चंद्रबिन्दु लगता है।

तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है जैसे- अंत्र, अंगुष्ठ ।

तद्‌भव रूपों में चन्द्रबिन्दु लगता है, जैसे- अँगूठा, दाँत, आँत, गाँव आदि ।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

  • भाषा की सार्थक इकाई को वाक्य कहते हैं।
  • वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य कहलाती है।
  • उपवाक्य से छोटी इकाई को पदबंध कहते हैं ।
  • पदबंध से छोटी इकाई को पद (शब्द) कहते हैं।
  • पद (शब्द) से छोटी इकाई को अक्षर कहते हैं।
  • अक्षर से छोटी इकाई को ध्वनि (वर्ण) कहते हैं।

वाक्य→उपवाक्य→पदबंध→पद (शब्द)→अक्षर →ध्वनि (वर्ण)।

  • वर्ण – भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। इस ध्वनि को वर्ण कहते हैं।
  • वर्णमाला – वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।

वर्णमाला से सम्बंधित प्रसनोत्तर-

  1. वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं हो सकते, वर्ण कहलाते हैं।
  2. उच्चारण के आधार पर वर्ण के दो भेद होते हैं।
  3. जिन वर्णों के उच्चारण में दूसरे वर्णो की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें स्वर कहते हैं।
  4. दीर्घ स्वरों की संख्या सात है।
  5. किसी स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं।
  6. हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की कुल संख्या 11 होती है।
  7. भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है।
  8. हिंदी में मूलत: वर्णों की संख्या 52 है।
  9. जिसके उच्चारण में श्वास लेने में समय अधिक लगे महाप्राण वर्ण कहलाते हैं।
  10. जिनका उच्चारण ऊपर के दांतों पर जीभ लगाने से होता है, उसे दन्त्य कहते है।
  11. अनुस्वार एवं विसर्ग को अयोगवाह कहा जाता है।
  12. हिन्दी शब्द कोश में ‘अं’ अ वर्ण से पहले आता है।
  13. आगत वर्ण – ज़, फ़। अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषाओं से आये कुछ शब्दो के शुद्ध उच्चारण के लिए ‘ज़’ ‘फ़’ वर्णों का प्रयोग होता है.। जैसे- ज़ोर, ज़रा, रफ़, फ़ौरन।

अन्य महत्वपूर्ण लेख –

»कपड़े का पर्यावाची शब्द | Kapde Ka Paryayvachi Shabd (2023)

»अम्बर का पर्यावाची शब्द | Ambar Ka Paryayvachi Shabd

»धन का पर्यावची शब्द | Dhan Ka Paryayvachi Shabd


 

स्वर ध्वनियों का सामान्य परिचय

जीभ के आधार पर

(i) अग्रभाग – इ , ई, ए, ऐ।

(ii) मध्यभाग – अ।

(ii) पश्चभाग – उ, ऊ, ओ, औ, ऑ, आ।

ओष्ठाकृति के आधार पर

(i) वृत्त मुखी – उ, ऊ, ओ, औ, ऑ

(ii) आवृत्त मुखी – अ, आ, इ, ई, ए, ऐ।

मात्रा की परिभाषा 

जब स्वरों का प्रयोग व्यंजनो के साथ मिलकर किया जाता है, तब उनका स्वरूप बदल जाता है और उन्हें ‘मात्रा’ कहते हैं।

स्वर

शब्द

-

ना

किसान

ती

गुलाम

धू

मृ

केला

हैवान

मो

चौपाल

 

निष्कर्ष- मैं आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा । यदि आपको उस लेख से संबंधि कोई सुझाव देना हो तो, आपके सुझाव का स्वागत है।

 

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