बंगाल विभाजन –
Bangal Vibhajan के समय बंगाल में बिहार, उडीसा, तथा बांग्लादेश शामिल थे। एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इतने बड़े प्रान्त को कुशल प्रशासन दे पाने में असमर्थ था। यद्यपि तत्कालिन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का प्रमुख कारण प्रशासनिक असुविधा बताया परंतु वास्तविक कारण प्रशासनिक, नही बल्कि राजनीतिक था। ज्ञातव्य हो कि 1874 में असम बंगाल से अलग हो गया था।
बंगाल विभाजन के समय बंगाल भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केंद्रबिन्दु था। जिसे उखाड़ फेंकन के लिए लार्ड कर्जन ने 20 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाज का निर्णय लिया। इसके विरोध में राष्ट्रवादियों द्वारा आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त 1905 को हुई। कलकत्ता के टाउन हॉल में कृष्ण कुमार मित्र और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में बैठक हुई जहां स्वदेशी आन्दोलन प्रारंभ करने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया।
बंगाल विभाजन लागू –
12 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन लागू हो गया। उस दिन को “शोक दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की गई। रवीद्रनाथ टैगोर के सुझाव पर इसे ‘राखी दिवस’ के रूप में भी मनाया गया। इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि बंगाल को विभाजित कर अंग्रेज़ इसकी एकता को भंग नहीं कर सकते। टैगोर के शांति निकेतन के तर्ज पर बंगाल नेशनल कालेज की स्थापना की गई। अगस्त 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का गठन हुआ। स्वदेशी आंदोलन में आत्म निर्भरता, आत्मशक्ति का नारा दिया। कांग्रेस ने भी अपने कलकत्ता अधिवेशन (1906) में स्वदेशी आन्दोलन, बहिष्कार आन्दोलन, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वशासन से संबद्ध चार प्रस्ताव पारित किया ।
बंगाल विभाजन आन्दोलन को सबसे अधिक सफलता विदेशी माल के बहिष्कार आन्दोलन से मिली। औरतों ने विदेशी चूड़ियों को पहननी व विदेशी बर्तन का इस्तमाल बंद कर दिया। धोबियों ने विदेशी कपड़े धोने से इंकार कर दिया। यहां तक कि महंतों ने विदेशी चीनी से बने प्रसाद को लेने से इंकार कर दिया। इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी कि महिलाओं नें इसमें सक्रिय भाग लिया। पहली बार घर से बाहर निकलीं, प्रदर्शन में भाग लेनें लगी तथा धरने पर बैठने लगी।
1905 ई. में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए गोपाल कृष्ण गोखले ने भी स्वादेशी और बहिष्कार आन्दोलन का समर्थन जताया। तिलक, विपिनचन्द्र पाल, लाला लाजपत राय एवं अरविंद घोष ने पूरे देश में इस आन्दोलन को फैलाना चाहा। 1906 में कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए दादा भाई नौरोजी ने पहली बार स्वराज्य की मांग प्रस्तुत की।
स्वादेशी आन्दोलन के चलाने के तरीके को लेकर उग्रवादी और उदारवादी नेताओं के मध्य मतभेद के कारण 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन मे उग्रवादी नेता अपने आप को कांग्रेस से अलग कर लिया।
Note:- उग्रवादी तथा उदारवादी लखनऊ अधिवेशन में फिर एक के साथ हो गए।
उग्रवादी नेता बालगंगाधर तिलक, लाखा लजपत राय, विपिंचन्द्र पाल एवं अरविंद घोष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। तिलक ने नारा दिया कि ” स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा “।
MAY YOU LIKE –
बंगाल विभाजन रद्द –
दिसम्बर, 1911 ब्रिटिश सम्राट जोर्ज पंचम और महारानी मेरी के भारत आगम पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया। दिल्ली दरबार में ही 12 दिसंबर, 1911 को सम्राट ने बंगाल विभाजन रद्द घोषित किया, साथ ही कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाए जाने की घोषणा की। घोषणा के अनुरूप बंगाल को एक नए प्रांत के रूप में पुनर्गठित दिया गया।
FAQ
Ques – बंगाल का विभाजन कब हुआ और क्यों हुआ?
12 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन लागू हो गया। एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इतने बड़े प्रान्त को कुशल प्रशासन दे पाने में असमर्थ था। यद्यपि तत्कालिन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का प्रमुख कारण प्रशासनिक असुविधा बताया परंतु वास्तविक कारण प्रशासनिक, नही बल्कि राजनीतिक था।
Ques – बंगाल विभाजन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
बंगाल विभाजन का मुख्य उद्देश्य हिन्दू और मुस्लिम एकता को समाप्त करना ।
Ques – बंगाल विभाजन के बाद कौन से प्रांत बने?
बंगाल विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश ) और पश्चमी बंगाल प्रांत बने ।
Ques – बंगाल के विभाजन के समय भारत का वायसराय कौन था?
12 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन लागू हो गया । बंगाल के विभाजन के समय भारत का वायसराय लार्ड कर्जन था
Ques – Bangal Vibhajan क्यों रद्द करना पड़ा?
दिसम्बर, 1911 ब्रिटिश सम्राट जोर्ज पंचम और महारानी मेरी के भारत आगम पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया। दिल्ली दरबार में ही 12 दिसंबर, 1911 को सम्राट ने बंगाल विभाजन रद्द घोषित किया, साथ ही कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाए जाने की घोषणा की।